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19 नवंबर इतिहास की किताब का एक अनदेखा पन्ना


प्रतिवर्ष 19 नवंबर को पूरे विश्व में अंतरराष्ट्रीय पुरुष दिवस मनाया जाता है। यानी मर्दों का दिन। हमारा और आपका दिन। पर कितनी अजीब सी बात है ना कि हर वर्ष मनाए जाने वाले इस दिन के बारे में मुझे पता इसी वर्ष चला। और शायद बहुत से लोग तो अब भी ऐसे होंगे जिन्हें इस विषय में कोई जानकारी नहीं होगी। क्या आप भी उन्हीं में से एक हैं?

यदी हाँ, तो आश्चर्य मत कीजिए। आप अकेले नहीं हैं। एक लड़का होकर जब मैं खुद इस बारे में नहीं जानता था तो आप से पिर क्या शिकायत! आखिर हम लड़के इतने काबिल ही कहाँ जो हमारे अस्तित्व पर भी कोई पर्व मनाया जाए। अरे, नहीं। हम “मजबूत” होते हैं ना हमें फर्क ही कहाँ पड़ता है।

8 मार्च। यह तारीख कुछ जानी पहचानी सी लगती है। जी हाँ. सही कहाँ इस दिन अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है। हर कोई फिर चाहे लड़का हो या लड़की, इस महत्वपूर्ण दिन के बारे में जानता है। फिर भले ही हम पुरुष स्वयं के अस्तित्व से जुड़े किसी दिन के बारे में बेशक जानते हों या ना, परंतु 8 मार्च के दिन अपनी माताओं-बहनों को बधाई देना नहीं भूलते। उन्हें इस बात का एहसास कराने से कभी नहीं चूकते कि ये दुनिया उनके न होने से कितनी अधूरी होती। पर संभवतः, ये दुनिया हमारे बिना चल सकती है। या फिर हम तथाकथित पढ़े लिखे लोगों के अनुसार लड़के आज भी सक्त होते हैं, जिन्हें लड़कियों की तरह छोटी-छोटी, सही-गलत चीजों का एहसास नहीं होता।

बचपन से हमें क्या सिखाया जाता है? लड़के नहीं रोते। और जो रोते हैं, वो लड़के ही नहीं होते। सही है ना, सारी दुनिया को धर्म, जाती, व्यवसाय, वर्ग, लड़का, लड़की, आदी। के आधार पर बाँट देने के बाद भी हम इंसानों को संतुष्टी नहीं मिली। जो मानव मन में उतपन्न होनेवाली भावनाओं का भी वर्गीकरण कर दिया। प्रेम, करुणा, दया-भावना, हर्ष, ये सब तो लड़कियों वाले लक्षण हैं, लड़के तो रोष, बल, और कठोरता का प्रतीक होते हैं।

आज पूरी दुनिया में लड़कियों को लड़कों के बराबर समझा जाता है। महिला सशक्तिकरण के विभिन्न अभियान इस विचारधारा का उत्थान करते हैं। और इस बात में कोई शक भी नहीं है कि महिलाएँ पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने में पूरी तरह से सक्षम हैं। लेकिन यह बात भी ध्यान देने लायक है कि यह समानता केवल व्यवसायिक अधिकारों और संवैधानिक संशोधनों तक ही सीमित है। और हम तथाकथित विकसित लोग, महिलाओं को घरों कि जिम्मेदारी से मुक्ती दिलाने में तो कुछ हद तक कामयाब हो गए, परंतु अपने घर के लड़कों को सारे घर का बोझ उठाने के उत्तरदायित्व से मुक्त नहीं कर पाए।

नारी प्रजाती के प्रती अपने फ़र्ज़ों को अदा करते करते हम पुरुषों के प्रति अपनी प्रभावग्राहकता को तो भूल ही गए। और चिरकाल से यही तो होता आया है। हम सोचते हैं कि लड़कों की भावनाएँ नहीं होती। यदी होती भी हैं तो उन्हें सामाजिक दबाव के भार के तहत उन्हें दबाए रखना चाहिए। आखिर एक कमज़ोर लड़का अपनी बहन की रक्षा कैसे करेगा? मानो परिवार की रक्षा की सारी ज़िम्मेदारी केवल पुरुषों के कंधों पर है।

बाकी हर माईने में लड़कियाँ लड़कों के बराबर होती हैं, परंतु वे केवल स्वयं की रक्षा खुद नहीं कर सकतीं। आज भी इस दुनिया की द्रोपदियों को अपने आत्मसम्मान को बनाए रखने हेतु, किसी कृष्ण की सहायता चाहिए। और ऐसा नहीं है कि पुरुषों के आत्मसम्मान पर कभी आघात नहीं पहुँचता। यह बात अलग है कि वे महिलाओं की तरह कभी जताते नहीं हैं, क्योंकि वे रो नहीं सकते ना। अपने विचारों को खुलकर व्यक्त करना पुरुषों की विशेषता जो नहीं है।

वैसे विशेषता से मुझे हमारे समाज की एक उल्लेखनीय विशेषता याद आ गई। हम अक्सर अख्बारों में दुनिया के किसी न किसी कोने में किसी महिला के साथ हुए दुशकर्म की खबर पढ़ते हैं। “यू।पी। के हात्रस में 3 बहशी दरिंदों ने किया युवती के साथ बलादकार” और इस बात से हम यह अंदाजा लगा लेते हैं कि सभी लड़के बेरहम होते हैं। उन्हें महिलाओं की गरिमा का हनन करने के सिवाय और कुछ नहीं आता।

दूसरे शब्दों में कहें तो हम कुछ चंद लोगों के गुनाह की सजा पुरे पुरुष समाज को देते हैं। उन्हें गलत समझकर। हाँ, मुझे इस बात से इंकार नहीं है कि हमारा समाज एक पुरुषप्रधान समाज है। परंतु सभी पुरुषों को इस धारणा में शामिल करना भी मुझे स्वीकार नहीं है। मैं खुद एक बहन का भाई हूँ और अपनी बहन को लिंगात्मक रूप से होनेवाले सभी भेदभावों की हवा से कोसों दूर रखता हूं।

हमारा समाज महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देता है। उनके खिलाफ हो रहे अत्याचारों के विरुद्ध आवाज उठाने को प्रोतसाहन देता है। उचित है। परंतु क्या अत्याचार केवल महिलाओँ के साथ ही होते हैं? कोई भी निशकर्ष निकालने से पहले हमारा इन सभी बातों पर गौर करना आवश्यक है। ताकि यह अंतरराष्ट्रीय पुरुष दिवस हम उन सभी के लिए खास बना सकें, जो हमारी ज़िंदगियों को खास बनाने के लिए जी जान लगा देते हैं। “जहाँ भेदभाव का नाम न हो, एक ऐसा समाज बनाते हैं, जिसे कल भी दुनिया याद करे, चलो ऐसा आज बनाते हैं।“


Image courtesies:

- DKCOY

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