यह तो हम सभी जानते हैं कि भारत दुनिया के सबसे बहुविविध देशों में से एक है। अतः हमारा संविधान ना केवल इस बात को स्वीकारता है अपितु इस बहुविविधता के खेत को धर्मनिरपेक्षता, समाजवाद, एकता व समानाधिकार के खाद से सींचता भी है। तथा हम सभी देशवासी इन सभी मूल्यों का पूरी निष्ठा से पालन भी करते हैं यह देखना और भी दिलचस्प है।
शनिवार 31 अक्टूबर को स्थानीय पुलिस ने त्रिपुरा में एक 90 वर्षीय महिला के सात 2 लोगों द्वारा कथित रूप से सामूहिक बलात्कार होने की सूचना दी। यह स्पष्ट रूप से भारतीयों के नियम-पालन का ही तो प्रमाण है। समान नहीं परंतु हम सब को अधिकार तो है, किसी और की गरिमा का हनन करने का। समाजवादी नहीं परंतु हम सब समाज के विभिन्न वर्ग खुदको एक दूसरे से श्रेष्ठ साबित करने के लिए, आपस में वादविवाद तो कर ही लेते हैं।
एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि यह घटना 24 अक्टूबर को उत्तरी त्रिपुरा जिले के कंचनपुर उपखंड के बरहल्दी गांव में हुई थी। परंतु परिवार द्वारा शिकायत दर्ज करवाने में देरी के कारण घटना की सूचना स्थानीय प्रशासन को 29 अक्टूबर को मिली। सही ही तो है! ज़रूरी तो नहीं कि यदी हमारे साथ कोई अपराध हो तो हम इसकी जानकारी उचित व्यक्ती को दें। चूँकि गलत तो यह है कि सरकार देश से अपराध का नाम निशान मिटाने के लिए कुछ नहीं कर रही।
घटना का पता चलते ही पुलिस ने फौरन जाँच शुरू कर दी। पुलिस अधीक्षक भानुपद चक्रवर्ती ने कहा कि महिला के साथ बलात्कार करनेवाले दोनों आरोपी फरार हैं जिन्हें पकड़ने के लिए एक अभियान चलाया गया है। आरोपियों में से एक महिला को “दादी माँ” बुलाता था। घटना की रात वह और अन्य एक और व्यक्ती वृद्धा के घर में घुस गए और उनके साथ बलात्कार किया। परंतु हमारी संस्कृती तो हमें बड़ों का आदर और सम्मान करना सिखाती है। और कुछ इस प्रकार हम अपना ज्ञान ले रहे हैं।
दुश्कर्म के बाद बेहद नाजुक हालत होने के उपरांत भी महिला ने किसी को भी इस बारे में सूचित नहीं किया। जब उनके परिजनों को इस बात का पता चला तो उन्होने तुरंत पुलिस में शिकायत दर्ज करवा दी।
आज इस घटना को 10 दिन से भी अधिक हो चुके हैं, परंतु अपराधियों का कहीं कोई नाम-निशान नज़र नहीं आ रहा। बलादकारियों तक पहुँचने की पुलिस की कोई भी कोशिश फ़िलहाल कोई रंग नहीं लाई है। “उन्होंने मुझे अधमरा करके छोड़ दिया।“ महिला ने अपने बयान में कहा।
वृद्धा के परिजनों ने प्रशासन से गुहार लगाते हुए उचित न्याय की माँग की है। परंतु मुझे खेद है कि अन्य विह्वलता से भरी हुई याचनाओं की तरह, यह गुहार भी केवल किसी गाँव के एक छोटे से पुलिस थाने में पड़ी पुरानी सी एक फाइल बनकर ही रह जाएगी, जिसके धूल से भरे पन्नों को कभी कोई पलटकर नहीं देखेगा।
भारत में प्रतिदिन यही तो होता है। कन्याओं तथा महिलाओं को अपनी हवस का शिकार बनाकर छोड़ दिया जाता है, उनके आत्म सम्मान को ठेस पहुँचाई जाती है, उनकी गरिमा का अनादर किया जाता है, और फिर समाज में बेबसी और हताशा का जीवन जीने पर विवश किया जाता है। हमारे देश में महिलाओं को आज किसी इस्तेमाल करने की वस्तु से अधिक और कुछ नहीं समझा जाता। न्याय के नाम पर प्रशासन केवल दिलासा दे सकता है, और कुछ चंद लोगों की सांतवना के भाव नारी का स्वाभिमान बिक जाता है।
यह कोई पहली बार तो है नहीं जो हमारे देश में ऐसी कोई घटना घटी हो। नेशनल क्राइम रेकोर्ड ब्यूरो के आँकड़ों के अनुसार भारत में हर 29 मिनट में कहीं ना कहीं, किसी ना किसी महिला का बलादकार होता है। इसके अतिरिक्त, निर्भया हत्तयाकाण्ड, हात्रस रेप केस, प्रियंका रेड्डी हत्तयाकाण्ड, आदी। ऐसे कितने ही उदाहरण हमारे सामने हैं जिनमें मनुष्यों के मन में पल रही हीन-भावना का स्पष्ट चित्रण है।
और ऐसा नहीं है कि प्रशासन को इसकी जानकारी नहीं है। 2 दिन से लेकर, 90 साल तक, आज हमारे देश में किसी भी वर्ग या आयु की कोई भी महिला सुरक्षित नहीं है। एक तरफ तो हम बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ का नारा लगाते हैं, और दूसरी तरफ हमारे देश की बेटियों की यह हालत है। उनकी इज्जत पर सरेआम हाथ दाला जाता है तथा अपराधियों को ढूँढने में असमर्थ होने पर, बात को “लड़की ने छोटे कपड़े पहने होंगे।“, “जरूर इसी ने पहल की होगी।“, कहकर टाल दिया जाता है ।
हमारे देश की न्याय प्ऱणाली ऊतनी मजबूत नहीं है, जितना हमारे देश के नेता दावा करते हैं। वैसे महिलाओँ की सुरक्षा के लिए भारत में उचित कानून भी व्याप्त नहीं है। तथा जो कानून बन चुके हैं, उनका सही ढंग से पालन नहीं किया जाता।
बड़े बड़े राजनेता, टेलीविजन व रेडियो पर आकर केवल इन विषयों पर बड़े बड़े भाषण देते हैं और सोचते हैं कि उनकी जिम्मेदारी बस यहीं तक थी। परंतु ऐसा नहीं है। हाँ, यद्यपी ऐसी कोई घटना किसी बड़े प्रभावशाली व्यक्ती की बेटी या बहन के साथ हुई होती तो बात और थी।
दर अस्ल, अस्ली बात ही यह है कि हमारे देश में सौ प्रतिशत पैसे की सत्ता चलती है। न्याय मिलना भी अब महज़ पैसे और ताकत का खेल बनकर रह गया है। तथा किसी भी मध्यम वर्गीय व्यक्ती का यहाँ इंसाफ की उपेक्षा करना व्यर्थ है।
नवंबर 2019 के आँकड़ों के अनुसार केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने बताया कि भारतीय उच्चतम न्यायालय में 59,867 मामले, और विभिन्न उच्च न्यायालयों में 44.75 लाख मामले लंबित हैं। मंत्री ने बताया कि जिला और अधीनस्थ अदालतों के स्तर पर, लंबित मामलों की संख्या 3.14 करोड़ है।
इससे साफ जाहिर होता है कि हमारे देश की कानून व्यवस्था कितनी सक्षम है। इन सभी विषमताओं के बाद और किसी भी प्रकार के संशोधन की उम्मीद करना अनुचित है।
हालाँकि यह सच है कि यह विफलता हमारे देश वासियों की मानवता पर एक गहरा, कभी ना मिटने वाला प्रश्न चिह्न है।
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- The Business Standard
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